समोसे-जलेबी पर चेतावनी… या गरीब की थाली पर सज़ा?
भूमिका: जब स्वाद पर लटकाया गया चेतावनी बोर्ड
Akhileaks Exclusive Web Story | रिपोर्ट: अखिलेश सोलंकी
रेलवे स्टेशन से लेकर गांव के मेले तक — समोसा और जलेबी हर भारतीय की थाली का हिस्सा हैं।
लेकिन अब इन्हीं देसी स्नैक्स पर सरकार हेल्थ वॉर्निंग बोर्ड लगाने की तैयारी कर रही है।
सवाल ये नहीं है कि इनमें तेल और शक्कर ज्यादा है — सवाल ये है कि नीति सिर्फ गरीब की थाली से क्यों शुरू होती है?
समोसे में तली मेहनत, जलेबी में घुली रोज़ी-रोटी
समोसा:
सुबह 9 बजे — फैक्ट्री गेट पर जुटती भीड़
₹10 में 3 समोसे + ₹5 में चाय = मज़दूर की पहली और कई बार इकलौती मील
कोई “फास्ट फूड कल्चर” नहीं — यह “वर्किंग क्लास एनर्जी” है
जलेबी:
बिहार, यूपी, एमपी और राजस्थान में हज़ारों परिवार इसी पर निर्भर
कढ़ाही, स्टोव और स्वाद — यही है उनका रोजगार
अब कहा जा रहा है: “ये हानिकारक है”
सरकार की चिंता — वाजिब है… लेकिन नीति पक्षपाती क्यों?
ICMR और सरकारी आंकड़ों के अनुसार:
हर 8वां भारतीय ओबेसिटी से जूझ रहा है
2050 तक 44 करोड़ लोग मोटापे की चपेट में होंगे
बच्चों में मोटापा 4 गुना बढ़ा है
PM मोदी ने खुद मन की बात में कहा —
> “बच्चों को जंक फूड से बचाना ज़रूरी है।”
लेकिन क्या जंक फूड सिर्फ समोसा है?
असली भेदभाव: हेल्थ बोर्ड सिर्फ गरीब की थाली पर क्यों?
🍴 फूड आइटम 🚨 हेल्थ बोर्ड?
समोसा, जलेबी ✅ अनिवार्य
पिज़्ज़ा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक ❌ कोई चेतावनी नहीं
केक, मैगी, चिप्स ❌ कोई कैलोरी बोर्ड नहीं
👉 गरीब की थाली “हानिकारक” बनी,
👉 अमीर की प्लेट “टेस्टफुल” रह गई!
वीडियो से बिज़नेस तक: समोसे-जलेबी की डिजिटल क्रांति
यूट्यूब पर “समोसा वेंडर” के वीडियो को मिलते हैं लाखों व्यू
कई जलेबी वालों के चैनल वायरल — फ्रैंचाइज़ी मॉडल तक शुरू
ऑनलाइन डिलीवरी, UPI पेमेंट, सोशल मीडिया ब्रांडिंग…
लेकिन सरकार का रुख क्या है? — हेल्थ बोर्ड लटकाओ!
> क्या उन्हें FSSAI ट्रेनिंग, नई फ्राई टेक्नोलॉजी और माइक्रो लोन नहीं दिए जा सकते?
ग्राउंड इकोनॉमी: समोसे से चलता है पूरा लोकल सिस्टम
हलवाई: समोसा बनाता है
दुकानदार: बेचता है
आटा, आलू वाला: सप्लाई देता है
LPG एजेंसी: गैस की बिक्री होती है
ग्राहक: सस्ती कीमत पर ऊर्जा पाता है
इसे “जंक फूड चेन” नहीं — “जनता फीडिंग सिस्टम” कहा जाना चाहिए।
✅ समाधान क्या है? नीति कैसे सुधरे?
1. पैकेज्ड प्रोसेस्ड फूड पर भी चेतावनी बोर्ड अनिवार्य हों
2. स्ट्रीट फूड वेंडर्स को हेल्दी कुकिंग ट्रेनिंग दी जाए
3. सरकारी कैंटीनों में हेल्दी लेकिन सस्ते विकल्प उपलब्ध कराए जाएं
4. फूड पॉलिसी में वर्ग-निरपेक्षता लाई जाए — गरीब-अमीर सबके लिए एक नियम
आख़िर में बस इतना…
> “समोसे में सिर्फ़ तेल नहीं, किसी का सपना तला गया होता है।
जलेबी में सिर्फ़ शक्कर नहीं, किसी की जिंदगी की मिठास होती है।”
स्वास्थ्य ज़रूरी है — लेकिन चेतावनी का बोझ वर्ग देखकर न बांटा जाए।
हेल्थ बोर्ड लगाइए — लेकिन “भेदभाव के स्वाद” को भी एक्सपोज़ कीजिए।