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MBA पास ‘थप्पड़बाज़’ IAS संजीव श्रीवास्तव: जब अफसरशाही ने छात्र को सज़ा नहीं, तमाचा दिया

Akhileaks EXPOSE

> “नाम रोहित राठौर… एक छात्र।
लेकिन उस दिन वो सिर्फ़ छात्र नहीं था — वो इस देश की प्रशासनिक हेकड़ी का शिकार था।
और जिसने शिकार बनाया — वो थे IAS अधिकारी और भिंड के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव।”

1 अप्रैल 2025 — मज़ाक नहीं, हकीकत

दिन था 1 अप्रैल 2025। जगह — दीनदयाल डांगरोलिया कॉलेज, भिंड।
यहां B.Sc गणित का पेपर चल रहा था। छात्र परीक्षा में बैठे थे, माहौल शांत था।
तभी कॉलेज परिसर में दाख़िल होते हैं ज़िले के डीएम — IAS संजीव श्रीवास्तव।

वो कक्ष में निरीक्षण करते हैं, और कुछ ही पलों में उनका रवैया बदलता है —
वो अफसर से जज बन जाते हैं, फिर संदिग्धों के जल्लाद।

कैमरे में जो कैद हुआ, वह चौंका देने वाला था —
उन्होंने एक छात्र रोहित राठौर को बिना सवाल-जवाब, बिना चेतावनी, कुर्सी से खींचा… और दो थप्पड़ जड़ दिए।
स्टाफ रूम में ले जाकर दोबारा मारा।

> “मेरे कान में बहुत दर्द हुआ, लेकिन मैं चुप रहा। वो IAS थे… उनके सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई।”
— रोहित राठौर, पीड़ित छात्र

IAS का पक्ष: “नकल हो रही थी”

संजीव श्रीवास्तव ने अपनी सफाई में कहा —

> “कॉलेज में संगठित नकल हो रही थी। मैंने विश्वविद्यालय से परीक्षा केंद्र बदलने की सिफारिश की है।”

लेकिन सवाल ये है:

क्या नकल के नाम पर एक छात्र को थप्पड़ मारना जायज़ है?

क्या अब अफसर खुद ‘थप्पड़ शिक्षक’ बन गए हैं?

क्या विश्वविद्यालय से सिफारिश से पहले हिंसा ज़रूरी थी?

डिग्रियां बहुत, लेकिन मर्यादा अधूरी

संजीव श्रीवास्तव के पास शानदार शैक्षणिक पृष्ठभूमि है:

B.E.

MBA

PGDCA

और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)

लेकिन लगता है, इन डिग्रियों में इंसानियत की कोई शिक्षा नहीं दी गई।
क्योंकि अफसर तो बन गए… लेकिन इंसान शायद नहीं।

विवादों का पुराना इतिहास

संजीव श्रीवास्तव सिर्फ़ इस एक घटना के लिए बदनाम नहीं हैं। उनका करियर कई विवादों से घिरा रहा है:

वर्ष विवाद

फरवरी 2025 जबलपुर हाईकोर्ट ने इनकी कार्यशैली पर सवाल उठाया, मुख्य सचिव को पुनर्विचार के लिए पत्र लिखा
2024 एक पत्रकार ने इन पर धर्म आधारित भेदभाव का आरोप लगाया
2023 महिला तहसीलदार माला शर्मा ने मानसिक उत्पीड़न की लिखित शिकायत की
बैतूल, उमरिया, भोपाल हर पोस्टिंग पर शिकायत, ट्रांसफर और विवाद

थप्पड़ नहीं, मानसिकता पर सवाल

यह मामला सिर्फ़ एक हिंसक हरकत नहीं है —
यह उस मानसिकता का पर्दाफाश है, जहां एक पदाधिकारी खुद को क़ानून से ऊपर मानने लगता है।

क्या एक IAS अफसर को ये हक़ है कि वो बिना सुनवाई, किसी छात्र को पीटे?
क्या यह लोकतंत्र है या प्रशासनिक अराजकता?

अफसर हैं, जज नहीं

IAS अफसर एक प्रशासक होता है, न कि ‘फील्ड में फैसला सुनाने वाला जज’।
थप्पड़ मारना कानून का पालन नहीं — उसका अपमान है।
और जब ये काम कैमरे के सामने हो — तो सिर्फ़ छात्र नहीं, प्रशासन की नैतिकता भी शर्मसार होती है।

> “अगर छात्र नकल कर रहा था — तो परीक्षा निरस्त कीजिए, केस दर्ज कराइए, लेकिन कानून को हाथ में लेना? यह किस संविधान में लिखा है?”

डर नहीं, न्याय चाहिए

> “मैं चुप रहा क्योंकि सामने IAS था” — यही वो डर है जो इस देश की सबसे बड़ी बीमारी बन चुका है।
जब पद देखकर ज़ुबान बंद हो जाती है — तब लोकतंत्र हारता है।

 Akhileaks की मांग:

हम पूछते हैं:

क्या रोहित राठौर को न्याय मिलेगा?

क्या संजीव श्रीवास्तव के खिलाफ IPC की धाराओं में केस दर्ज होगा?

क्या इस देश में IAS बनना इतना बड़ा है कि इंसानियत उससे छोटा हो जाए?

Akhileaks EXPOSE

> हम सत्ता के थप्पड़ों को चुपचाप नहीं सहते —
हम उनकी गूंज सुनाते हैं… पूरे देश को।

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