CM की कुर्सी या कांग्रेस का कलंक? ‘ढाई साल वाला फार्मूला’ फिर बना जंजाल
कर्नाटक से शुरू, कांग्रेस के भीतर भूचाल तक
Akhileaks Exclusive
“अगर कोई फार्मूला बार-बार पार्टी तोड़ दे, सरकार गिरा दे और नेता बगावती बना दे — तो उसे फार्मूला नहीं, सियासी आत्मघात कहते हैं।”
> और कांग्रेस यही गलती बार-बार कर रही है।
‘ढाई साल वाला फार्मूला’ क्या है?
कांग्रेस पार्टी ने बीते एक दशक में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों में नेतृत्व का बैलेंस बनाए रखने के लिए Chief Minister Power Sharing Formula अपनाया — जिसे आम भाषा में “ढाई साल-ढाई साल” का समझौता कहा जाता है। लेकिन जहां भी ये फार्मूला चला, वहां सत्ता बिखरी, और पार्टी टूट गई।
अब कर्नाटक में क्या चल रहा है?
2023 में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज की —
224 में से 135 सीटें, BJP का दक्षिणी गढ़ हिला दिया।
CM बने सिद्धारमैया
– OBC समुदाय में पकड़, अल्पसंख्यकों और दलित वोट बैंक के चेहरा।
Deputy CM बने डीके शिवकुमार
– संगठन के रणनीतिकार, फंडिंग मास्टर, प्रचार के हीरो।
बीच में पार्टी ने ‘तात्कालिक शांति’ का रास्ता अपनाया:
> “आप दोनों मिलकर चलिए — ढाई साल बाद CM पद की अदला-बदली होगी।”
लेकिन अब नवंबर 2025 नजदीक आ रहा है — और D.K. शिवकुमार खेमा एक्टिव हो गया है।
शिवकुमार के समर्थकों की बगावत के संकेत:
इकबाल हुसैन (MLA): “100 विधायक शिवकुमार के साथ हैं।”
BR पाटिल: “सिद्धारमैया किस्मत से CM बने… हमने ही सोनिया से मिलवाया था।”
आरोपों की झड़ी: भ्रष्टाचार, मंत्रियों का घमंड, योजनाओं की फंडिंग न आना।
कांग्रेस में अंदरूनी आग, हाईकमान सिर्फ़ देख रहा है
रणदीप सुरजेवाला: “कोई CM नहीं बदला जाएगा।”
मल्लिकार्जुन खड़गे: “फैसला हाईकमान करेगा।”
> लेकिन सवाल उठता है — क्या खड़गे खुद हाईकमान नहीं हैं?
या फिर राहुल गांधी, सोनिया गांधी ही अब भी अंतिम निर्णयकर्ता हैं?
ऐसे ही फार्मूलों से कांग्रेस ने क्या-क्या गंवाया?
मध्य प्रदेश (2020):
> सिंधिया को CM पद का वादा, निभा नहीं पाए।
सिंधिया BJP में गए, सरकार गिर गई।
राजस्थान (2020):
> सचिन पायलट को ‘ढाई साल’ का आश्वासन।
अशोक गहलोत नहीं माने — पायलट ने बगावत कर दी।
छत्तीसगढ़ (2023):
> भूपेश बघेल Vs टीएस सिंहदेव — वही ढाई साल वाला तनाव।
सिंहदेव किनारे हुए, पार्टी में बिखराव हुआ।
तीनों राज्यों में कांग्रेस अगला चुनाव हार गई।
तो अब कांग्रेस की असली योजना क्या है?
कई सियासी विश्लेषकों का मानना है कि मल्लिकार्जुन खड़गे की निगाहें एक तीसरे नाम पर टिकी हैं —
> प्रियांक खड़गे — यानी उनका अपना बेटा।
“सहमति का उम्मीदवार” लाने की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है — ताकि न शिवकुमार जीते, न सिद्धारमैया, और अंतिम कार्ड बनें — खड़गे परिवार।
सीजफायर vs समाधान: कांग्रेस की रणनीतिक भूल
कांग्रेस बार-बार समाधान की जगह “सीजफायर” कराती है — यानी वक़्त के लिए बगावत को रोका जाता है, लेकिन मूल समस्या नहीं सुलझाई जाती।
राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी यही रही है — वो डैमेज कंट्रोल नहीं कर पाते।
नतीजा: हर राज्य में गुटबाज़ी, बगावत और सत्ता से बाहर होना।
बीजेपी की नजरें टिकी हैं…
भले ही BJP अभी चुप है — लेकिन पार्टी को पता है कि जहां कांग्रेस लड़ी, वहां सत्ता हाथ से गई।
सिंधिया हो, पायलट हो या सिंहदेव — सबने पार्टी को हिला कर रख दिया।
अब कर्नाटक भी उसी मोड़ पर है — और BJP अपनी अगली चाल के इंतज़ार में है।
निष्कर्ष: ये फार्मूला नहीं, टाइम बम है
‘ढाई साल वाला फार्मूला’ कभी समाधान नहीं रहा — ये कांग्रेस का सबसे बड़ा रणनीतिक ब्लंडर बन गया है।
> क्या राहुल गांधी और खड़गे इसे रोक पाएंगे?
या फिर अगली बार कर्नाटक भी “Congress-mukt” हो जाएगा?