ब्राह्मण बनाम सत्ता: खंडेलवाल की नियुक्ति से क्या MP की राजनीति से ब्राह्मण ‘डिलीट’ हो रहे हैं?
बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी बैठक सिर्फ़ एक औपचारिकता थी। असली फ़ैसला तो हज़ार किलोमीटर दूर दिल्ली में हो चुका था।
Akhileaks Exclusive: भोपाल
हेमंत खंडेलवाल, वैश्य समाज से, नए प्रदेश अध्यक्ष बने — जबकि वी.डी. शर्मा के बाद किसी और ब्राह्मण नेता को यह ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी गई।
तो सवाल उठता है:
क्या मध्यप्रदेश की राजनीति से ब्राह्मण समाज को योजनाबद्ध तरीके से बाहर किया जा रहा है?
इतिहास गवाह है —
1956 से 1990 तक, मध्यप्रदेश के 5 मुख्यमंत्री ब्राह्मण थे।
श्यामा चरण शुक्ल से लेकर कैलाशनाथ काटजू तक — ब्राह्मणों का कद सत्ता में सर्वोच्च था।
1969 में श्यामा चरण शुक्ल की कैबिनेट में 40 में से 23 मंत्री ब्राह्मण थे।
लेकिन 1989 में VP सिंह की मंडल राजनीति ने सत्ता के समीकरण बदल दिए।
अर्जुन सिंह ने OBC-आदिवासी गठजोड़ को आगे बढ़ाया और ब्राह्मण नेतृत्व को चुनौती दी।
2000 के बाद क्या बदला?
छत्तीसगढ़ बनने के बाद शुक्ल और वोरा जैसे ब्राह्मण नेता बाहर हुए
मध्यप्रदेश में ब्राह्मण नेतृत्व का वैक्यूम बन गया
संघ ने ब्राह्मणों को थिंक टैंक में रखा, लेकिन मुख्यमंत्री OBC से ही बने:
उमा भारती
शिवराज सिंह चौहान
मोहन यादव
📉 आज की स्थिति:
मोहन यादव कैबिनेट में सिर्फ 2 ब्राह्मण मंत्री
शिवराज सरकार में 4, कमलनाथ सरकार में 3
भाजपा-कांग्रेस दोनों की फ़र्स्ट लाइन में ब्राह्मण न के बराबर
मोदी सरकार में 27 OBC मंत्री, वहीं ब्राह्मण कहीं गिनती में भी नहीं
🗣 ब्राह्मण: रणनीतिकार तो हैं, लेकिन निर्णयकर्ता नहीं
चुनावी चेहरा नहीं — सिर्फ़ किंगमेकर
मंच पर सूत्रधार — लेकिन वोटों की राजनीति से गायब
मीडिया में चेहरा — लेकिन संगठन और संख्या के बिना दबावहीन
खंडेलवाल की नियुक्ति कोई विवाद नहीं… पर सवाल ज़रूर है
वीडी शर्मा के बाद किसी ब्राह्मण को मौका क्यों नहीं मिला?
यह सवाल किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस पूरे समाज का है
जिसने कभी मध्यप्रदेश में सत्ता की रूपरेखा बनाई थी… और आज हाशिए पर भी नहीं दिखता।
क्या ब्राह्मण अब मंदिर की घंटी बन चुके हैं?
“जिसे सभी बजाते हैं… पर कोई सुनता नहीं!”
मैं हूं अखिलेश सोलंकी — और आप देख रहे हैं Akhileaks.com
जहां हम सिर्फ़ चेहरे नहीं, चालें पहचानते हैं —
बिना शोर… लेकिन पूरी धार के साथ।