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भोपाल का ड्रग–वीडियो माफिया: शाहवर मछली गैंग और सत्ता का साया

भूमिका — राजधानी के सीने में पनपती गैंगस्टर संस्कृति

भोपाल — मध्यप्रदेश की राजधानी। कहने को ये शहर है कानून का केंद्र, शासन की नब्ज, और सत्ता का चेहरा। लेकिन आज हम Akhileaks पर एक ऐसा चेहरा उजागर कर रहे हैं, जो सत्ता की रोशनी में छिपे अंधेरे की तस्वीर है।

यह कहानी दो नामों से शुरू होती है — शाहवर उर्फ मछली और उसका भतीजा यासीन।
लेकिन ये दो नाम सिर्फ अपराधियों के नहीं हैं — ये उस तंत्र की पहचान हैं, जिसमें ड्रग्स, वीडियो, और सत्ता एक ही थाली में परोसे जा रहे थे।

 

गिरफ्तारी — लेकिन सवाल गहरे हैं

हाल ही में भोपाल पुलिस ने गैमन मॉल के पास से इन दोनों को पकड़ा। बरामदगी में सामने आए:

3 ग्राम MD ड्रग

देशी पिस्टल

मोबाइल फ़ोन, जिसमें मौजूद थे:

निर्वस्त्र कर युवकों की पिटाई के वीडियो

अश्लील वीडियो क्लिप्स

ब्लैकमेलिंग के लिए रिकॉर्ड की गई युवतियों के साथ आपत्तिजनक फुटेज

लेकिन असली सवाल यह नहीं कि क्या मिला —
सवाल यह है कि ये सब अब तक चलता कैसे रहा?

गैंग नहीं, एक ‘ऑपरेटिंग सिस्टम’ था ये रैकेट

Akhileaks ने इस नेटवर्क की तह में जाकर जो पाया, वह एक आपराधिक नवाचार था।

> Step 1: युवतियों को MD ड्रग्स की लत लगाना
Step 2: फिर उन्हें ड्रग डिलीवरी गर्ल्स की तरह इस्तेमाल करना
Step 3: अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेलिंग
Step 4: निर्वस्त्र पिटाई वाले वीडियो से डर का साम्राज्य
Step 5: सोशल मीडिया धमकियों से दबाव और कंट्रोल

 

यानी एक संगठित अपराध उद्योग — जहां नशा, ब्लैकमेल और राजनीतिक पास एक साथ चलते थे।

यासीन की स्कॉर्पियो पर विधानसभा पास और प्रेस स्टिकर!

इस पूरे मामले की सबसे खतरनाक परत तब खुलती है, जब पता चलता है कि:

यासीन की स्कॉर्पियो गाड़ी पर विधानसभा पास चिपका था।

साथ में फर्जी ‘PRESS’ स्टिकर भी लगा था।

दोनों की पहुँच कुछ स्थानीय नेताओं, पार्षदों और संगठनों तक थी।

अब सवाल उठता है —
किस विधायक का नाम लिया गया?
कौन-सा संगठन इनको संरक्षण देता रहा?
क्या सत्ता इस पूरे रैकेट से अनजान थी?

 

पुराना केस, पुराना अपराधी — लेकिन फिर भी आज़ाद क्यों?

Akhileaks की पड़ताल में एक और बड़ा सच सामने आता है:

2022 में शाहवर पर कॉलेज छात्रा के रेप और वीडियो ब्लैकमेलिंग केस में FIR हुई थी।

लेकिन… कुछ ही महीनों में केस ठंडा पड़ गया।

गवाह पलटते गए, दबाव बना… और मछली फिर से पानी में तैरने लगा।

तो सवाल है —
क्या ये सिर्फ अपराधियों की चाल थी या सत्ता की चुप्पी भी मिली हुई थी?

 

2003 से 2025 तक — लगातार भाजपा की सरकार, फिर ये माफिया क्यों ज़िंदा है?

अगर हम राजनीतिक परिप्रेक्ष्य देखें तो:

2003 से 2025 तक, सिर्फ 15–16 महीने छोड़कर भाजपा सत्ता में रही है।

भोपाल — जहाँ मंत्रालय, DGP ऑफिस, IB मुख्यालय तक मौजूद हैं — वहाँ एक गैंग इतने वर्षों तक कैसे पनपता रहा?

क्या सुरक्षा एजेंसियों की नजर नहीं पड़ी या जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया?

> क्या विधानसभा पास सिर्फ एक कागज था… या किसी नेता की मूक सहमति?

 

Akhileaks की 5 बड़ी मांगें — ताकि सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, न्याय हो

1. CBI जांच हो — विधानसभा पास और PRESS पास जारी करने वालों की भूमिका की।

2. ब्लैकमेलिंग में शामिल चेहरों की सार्वजनिक पहचान हो — सोशल पोस्टर्स, प्रेस ब्रीफिंग के ज़रिए।

3. युवतियों को सिर्फ ‘डिलीवरी गर्ल्स’ न समझें — उन्हें पीड़िता मानें, कानूनी सहायता, काउंसलिंग और पुनर्वास मिले।

4. शाहवर और यासीन के कॉल रिकॉर्ड्स, सोशल मीडिया नेटवर्क और आर्थिक लेन-देन को सार्वजनिक किया जाए।

5. इस पूरे मामले की निगरानी हाईकोर्ट या स्वतंत्र लोकपाल से कराई जाए।

 

Akhileaks Verdict: “मछली अकेली नहीं थी — पूरा जाल था”

> “जब अपराध वीडियो से चलता हो, ड्रग्स से चलता हो, और सत्ता से छिपा हो —
तब अपराधी अकेला नहीं होता,
पीछे पूरा सिस्टम खड़ा होता है।”

 

शाहवर और यासीन महज़ मोहरे हैं।
असल सवाल उस सत्ता से है, जो ऐसे लोगों को पास, प्रेस का चोला और खुलेआम घूमने की छूट देती है।
ये केस पुलिस की गिरफ्त से बड़ा है — ये सत्ता के गिरेबान तक जाता है।

 

समापन: Akhileaks सवाल पूछता रहेगा

“मैं हूं अखिलेश सोलंकी — और आप देख रहे हैं Akhileaks।
जहाँ हम सिर्फ खबरें नहीं दिखाते — हम उनके पीछे की नीयत उजागर करते हैं।
आज का सवाल सत्ता से है — जवाब भी वहीं से आना चाहिए।”

 

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