उपराष्ट्रपति चुनाव: पी.सी. मोदी बने रिटर्निंग अधिकारी, नियुक्ति पर उठे सवाल

नई दिल्ली
देश में नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद तेजी से आगे बढ़ रही है. चुनाव आयोग ने राज्यसभा महासचिव पी. सी. मोदी को आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया है. इसके साथ ही राज्यसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव गरिमा जैन और निदेशक विजय कुमार को सहायक रिटर्निंग ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया है. निर्वाचन प्रक्रिया के तहत, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिवों को बारी-बारी से निर्वाचन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है. पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा के महासचिव इस भूमिका में थे. हालांकि, पी.सी. मोदी की नियुक्ति के साथ उनके अतीत को लेकर कुछ विवाद भी उठे हैं, जिसने इस नियुक्ति को चर्चा का विषय बना दिया है.
कौन हैं पी.सी. मोदी?
पी.सी. मोदी एक अनुभवी नौकरशाह हैं, जिन्हें नवंबर 2021 में राज्यसभा के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया. उनकी नियुक्ति पर विपक्ष ने सवाल उठाए, खासकर तब जब उनके पूर्ववर्ती पीपीके रामाचर्युलु को केवल दो महीने बाद हटा दिया गया. रामाचर्युलु राज्यसभा सचिवालय के पहले अधिकारी थे, जिन्होंने इस पद को संभाला था, और उनकी अचानक विदाई ने विपक्षी दलों में असंतोष पैदा कर दिया.
विपक्ष ने उठाए सवाल
विपक्ष ने यह सवाल उठाया कि रामचर्युलु को हटाकर मोदी को यह जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय क्यों लिया गया. यह परिवर्तन 2021 के मॉनसून सत्र के दौरान हुआ, जिसने इस नियुक्ति को और अधिक संदिग्ध बना दिया. राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि यह निर्णय चौंकाने वाला है, क्योंकि सत्र पहले से ही बुलाया जा चुका था. ऐसे में अचानक बदलाव की वजह और इसके पीछे की मंशा को समझना आवश्यक है.
खरगे ने यह भी उल्लेख किया कि आमतौर पर राज्यसभा के महासचिव पद के लिए कानून के विशेषज्ञों को चुना जाता है, जबकि पी. सी. मोदी भारतीय राजस्व सेवा (IRS) के 1982 बैच के अधिकारी हैं, जिन्होंने मई 2021 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अध्यक्ष पद से रिटायरमेंट लिया था. कांग्रेस के राज्यसभा में मुख्य व्हिप जयराम रमेश ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि डॉ. पी. पी. रामाचर्युलु एक पेशेवर, निष्पक्ष और पूरी तरह से योग्य व्यक्ति हैं, और मोदी शासन में यही तीन बातें सबसे बड़ी समस्याएं मानी जाती हैं.
अन्य विपक्षी दल भी हैरान
तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस बदलाव पर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं. टीएमसी के मुख्य व्हिप सुखेंदु शेखर रॉय ने सवाल उठाया कि केवल 73 दिन पहले नियुक्त व्यक्ति को अचानक एक आईआरएस अधिकारी से क्यों बदला गया. वहीं, राजद के राज्यसभा नेता मनोज झा ने बताया कि रामाचर्युलु पिछले सत्र में शामिल नहीं हो पाए, क्योंकि उनकी नियुक्ति उस सत्र के बाद हुई थी. नए सत्र से ठीक पहले किसी नए व्यक्ति की नियुक्ति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
पी. सी. मोदी के खिलाफ लग चुके गंभीर आरोप
पी. सी. मोदी का नाम पहले भी कई विवादों में आ चुका है. मुंबई के पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक शिकायत भेजी थी, जिसमें उन पर एक “संवेदनशील मामला” दबाने का निर्देश देने का आरोप लगाया गया था. इसके अलावा, शिकायत में यह भी कहा गया कि सीबीडीटी के अध्यक्ष के रूप में मोदी ने मुख्य आयुक्त को बताया था कि एक विपक्षी नेता के खिलाफ “सफल तलाशी” कार्रवाई के चलते उन्होंने अपना पद “सुरक्षित” कर लिया है. इस शिकायत के दो महीने बाद, सरकार ने उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिया, और इसके बाद प्रमुख कर निकाय के प्रमुख के रूप में दो और कार्यकाल विस्तार भी दिए गए.
उप-राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?
संविधान के अनुच्छेद 66(1) के अनुसार, उप-राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है. यह चुनाव एकल संक्रमणीय मत पद्धति के तहत आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से और गुप्त मतदान के माध्यम से संपन्न होता है. रिटर्निंग ऑफिसर चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया की देखरेख करता है, जिसमें चुनाव की अधिसूचना जारी करना, नामांकन पत्रों को स्वीकार करना, जमानत राशि की जमा राशि, नामांकन की जांच, नाम वापसी की प्रक्रिया और अंत में मतगणना शामिल है. अब जबकि चुनाव आयोग ने रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति कर दी है, उप-राष्ट्रपति चुनाव की तिथियों की घोषणा की उम्मीद की जा रही है.
जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा
जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का उल्लेख किया. हालांकि, राजनीतिक हलकों में इस निर्णय के पीछे कई अन्य संभावित कारणों पर चर्चा हो रही है. सूत्रों के अनुसार, विपक्ष द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना सरकार के लिए अप्रिय था. यह प्रस्ताव विपक्ष ने लगभग 3 बजे प्रस्तुत किया, और धनखड़ ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया, जिससे सरकार की लोकसभा में इसी तरह के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की योजना प्रभावित हुई.
धनखड़ का कार्यकाल कई विवादों से घिरा रहा. विपक्ष ने उन पर सरकार के पक्ष में पक्षपात करने का आरोप लगाया, जिसके चलते दिसंबर 2024 में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया. इसके अलावा, धनखड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान विपक्षी सांसदों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की, जिससे उनके और विपक्ष के बीच तनाव और बढ़ गया.