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ग्वालियर-चंबल का अगला ‘बॉस’ कौन?

सिंधिया बनाम तोमर की जंग और BJP के भीतर उभरती दरार

BJP के भीतर ‘मैं लाया’ बनाम ‘सरकार लाई’ का टकराव

मुरैना में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम के मंच से विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का बयान सामने आया —

> “गांव में जो विकास हुआ है, वह मेरे या मुरैना सांसद की वजह से नहीं, बल्कि भाजपा सरकार की नीतियों से संभव हुआ है।”

तोमर का यह कथन किसी सामान्य दावा खंडन जैसा लग सकता है,
लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक स्क्रिप्ट कहीं ज़्यादा गहरी और सधी हुई है।

Akhileaks को मिले सूत्रों और मंच की बॉडी लैंग्वेज के विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट है कि यह हमला सीधे-सीधे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की उस शैली पर था —
जिसमें वो हर विकास कार्य को “मैं लाया…” कहकर प्रचारित करते हैं।

ग्वालियर-चंबल में दो सत्ता केंद्र: सिंधिया बनाम तोमर

मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति में
तोमर और सिंधिया, दोनों खुद को क्षेत्रीय नेतृत्व का असली हकदार मानते हैं:

विशेषता नरेंद्र सिंह तोमर ज्योतिरादित्य सिंधिया

पृष्ठभूमि संघ और संगठन से जुड़ा भाजपाई चेहरा पूर्व कांग्रेस नेता, राजपरिवार से संबंध
शैली सामूहिक नेतृत्व, संगठन प्रधान व्यक्तिगत छवि केंद्रित, मीडिया फ्रेंडली
ताकत ज़मीनी संगठन और कार्यकर्ता समर्थन दिल्ली दरबार (मोदी-शाह) से निकटता

 

मोहन यादव की तारीफ: नई राजनीतिक समीकरण की बुनियाद?

हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सिंधिया ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को

> “अब तक का सबसे संवेदनशील और मेहनती मुख्यमंत्री”
बता दिया।

इस मंच पर तोमर भी मौजूद थे — लेकिन सिंधिया की पब्लिक प्रेज़ेंटेशन ने यह संकेत दे दिया कि
वो अब मोहन यादव को अपना राजनीतिक साझेदार बनाना चाहते हैं।

यह समीकरण तोमर को सीधी चुनौती देता है।

BJP को क्या हो सकता है नुकसान?

अगर यह टकराव खुला रहा, तो BJP को ग्वालियर-चंबल में गंभीर नुकसान हो सकता है:

2023 विधानसभा में क्षेत्र की कई सीटें BJP हार चुकी है।

कार्यकर्ता दो धड़ों में बंटे हुए हैं — “तोमर कैंप” बनाम “सिंधिया कैंप”

नीचे स्तर पर टिकट वितरण और प्रचार को लेकर भ्रम फैला हुआ है।

यह स्थिति 2028 के चुनाव तक बनी रही तो
गुटबाजी BJP की हार की सबसे बड़ी वजह बन सकती है।

 

क्या मोहन यादव बन सकते हैं संतुलन का केंद्र?

मोहन यादव इस समय दोनों गुटों से तालमेल बनाए हुए हैं।

सिंधिया से दिल्ली दरबार के समीकरण निभा रहे हैं,

तोमर से संगठनात्मक सम्मान भी बचा रहे हैं।

Akhileaks का विश्लेषण कहता है —
मोहन यादव ही भविष्य की धुरी बन सकते हैं,
यदि वो इस टकराव को संभालने में सफल रहते हैं।

Akhileaks निष्कर्ष: BJP की अंदरूनी लड़ाई गहराती जा रही है

> “ग्वालियर-चंबल की सत्ता सिर्फ़ मंच पर नहीं लड़ी जा रही —
वो BJP के दिल में दरार पैदा कर रही है।”

 

अगर सिंधिया ‘मैं’ की राजनीति को नहीं रोकते…

और अगर तोमर ‘टीम वर्क’ की दुहाई देकर खामोश रह जाते हैं…
तो BJP को राजनीतिक दांव पर न सिर्फ़ सीटें, बल्कि स्थानीय साख भी गंवानी पड़ सकती है।

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